Wednesday 20 October 2010

मैंने सच की बात की तो लोग दुश्मन हो गये


मैंने सच की बात की तो लोग दुश्मन हो गये
बात हक के साथ की तो लोग दुश्मन हो गये

उम्र भर जिनसे निभाई मैंने दुश्मनी बार बार
मौत की मंजिल पे सारे मेरे हमदम हो गये

कभी कभी जिनसे मिला, सबने ही प्यारा कहा
साथ जिनके बरसों से, वो लोग बेमन हो गये

खून के रिश्तों की लज्जत, जाने कब कहां खो गई
अजनबी लोगों से रिश्ते, दिल की उलझन हो गये

रूह की बातें पराई, मन से अनबन हो गई
खरीद लो और बेच दो, अब लोग बस तन हो गये

Monday 11 October 2010

मोहसि‍न का हदयस्‍पर्शी कलाम


मेरे कातिल को पुकारो कि मैं जिन्दा हूं अभी
फिर से मक्तल को संवारो कि मैं जिन्दा हूं अभी

ये शब-ए-हिज्र तो साथी है मेरी बरसों से
जाओ सो जाओ सितारों कि मैं जिन्दा हूं अभी

ये परेशान से गेसू नहीं देखे जाते
अपनी जुल्फों को संवारो कि मैं जिन्दा हूं अभी

लाख मौजों में घिरा हूं, अभी डूबा तो नहीं
मुझको साहिल से पुकारो कि मैं जिन्दा हूं अभी

कब्र से आ भी ‘मोहसिन’ कि आती है सदा
तुम कहां हो मेरे यारों कि मैं जिन्दा हूं अभी

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मक्तल - कत्ल का स्थान
शब ए हिज्र- विरह की रात
गेसू - चेहरे पर आई लट

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वो अक्सर मुझसे कहती थी
वफा है जात औरत की
मगर जो मर्द होते हैं
बहुत बे-दर्द होते हैं
किसी भंवरे की सूरत
गुल की खुशबू लूट जाते हैं
सुनो तुम को कसम मेरी
रिवायत तोड़ देना तुम
ना तन्हा छोड़ कर जाना
ना ये दिल तोड़ कर जाना

मगर फिर यूं हुआ मोहसिन
मुझे अनजान रास्तों पर
अकेला छोड़ कर उस ने
मेरा दिल तोड़ कर उस ने
मोहब्बत छोड़ दी उस ने
वफा है जात औरत की
रिवायत तोड़ दी उसने

Wednesday 6 October 2010

एक सुन्दरतम सन्ध्या


एक सुन्दरतम सन्ध्या
जब पावन काल
किसी साध्वी की मौन आराधना सा
शांत और मुक्त है।

इस खामोशी की मदहोशी में
एक सूरज
सागर के हर किनारे पर
अपने आप डूब रहा है।

स्वर्गीय विनम्रता
सागर की स्निग्ध छाती पर
उग आयी है।

सुनो
परमचेतना
जाग रही है।

उसके उगते हुए स्वरों में
किसी अत्यंतिक
तूफान सी सरसराहट है।

मेरे साथियों
यह प्रकृति कहीं भी
कम दिव्य नहीं है।

अपने सीने में
रहने वाले हर्ष को
सदैव महसूस करो।

उसी हर्ष के मन्दिर में
हमारी बाहरी भटकनों को जानने वाला
परमात्मा भी है।
भले ही हम उसे ना जानते हों।


विलियम वर्डसवर्थ की कवि‍ता का अनुभव