Saturday 16 January 2010

फिर तेरे इशारे___



जीना मुश्किल, और चुप्पा दिल
वक्त का वार है, कैसे सहें?

रोते गीत हैं, जहरीले मीत हैं
छंदों में इन्हें, कैसे कहें?

जिन्दा तो लानत, मरे तो अमानत
इस प्रेम के नद में कैसे बहें?

दोपहर चढ़ी और रात भी बढ़ी
चि‍न्‍ताओं के पर्वत कैसे ढहें?

नैनों के काम, रहे सदा बदनाम
फिर तेरे इशारे, कैसे गहें?

9 comments:

vandana gupta said...

sundar rachna.

Crazy Codes said...

itni khubsurat kavita, nihshabd hun... kaise kahun?

अनिल कान्त said...

ek achchhi rachna

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!!

हास्यफुहार said...

अच्छी रचना।

shama said...

नैनों के काम, रहे सदा बदनाम
फिर तेरे इशारे, कैसे गहें?
Iske aage kya kah sakte hain?

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

जीना मुश्किल, और चुप्पा दिल
वक्त का वार है, कैसे सहें?

रोते गीत हैं, जहरीले मीत हैं
छंदों में इन्हें, कैसे कहें?

waah kya baat kahi hai.

dipayan said...

बहुत सही कहा आपने. अच्छा लगा .

Anonymous said...

sunder atisunder.............

http://rajdarbaar.blogspot.com/

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