Thursday 7 January 2010

सस्‍नेह आमंत्रण

क्‍या आपने हमारी कवि‍ता "नाराजगी का वृक्ष" पढ़ी ??

अगर नहीं तो ये लि‍न्‍क देखें- 

2 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

नाराज हूँ मनुष्य से
कि वो सारी प्रजाति के
जंगली घरेलू
समुद्री और नभचर
सारे प्राणियों को खा गया है
उसकी हवस को न पचा पाने के परिणामों से
सारा वातावरण दूषित है।

Behtareen !

हास्यफुहार said...

जी... क्‍या कहा?

कुछ नहीं...

बहुत अच्छी कविता।

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